Saturday 27 April 2024

आदिकालीन साहित्य


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जैसा कि हिंदी साहित्य में आदिकाल की समय सीमा सातवीं शती के मध्य से लेकर चौदहवीं शती तक मानी जाती है और साहित्यिक परम्पराओं के निर्माण का काल है |

      इस काल में संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश में तो रचनाएँ हो ही रही थी, साथ ही अपभ्रंश से धीरे – धीरे मुक्त होती हुई हिंदी भी अपना रूप ग्रहण कर रही थी |

आदिकालीन हिंदी साहित्य की उपलब्ध सामग्री के दो वर्ग –


1. इसमें वे रचनाएँ हैं जिनकी भाषा अपभ्रंश के प्रभाव से मुक्त हिंदी नहीं है |

2.  इसमें वे रचनाएँ हैं जिनकी भाषा अपभ्रंश के प्रभाव से मुक्त हिंदी है | जैसे बीसलदेव रासो, हम्मीर रासो, पृथ्वीराज रासो, खुसरो की पहेलियाँ आदि |

आदिकालीन हिंदी साहित्य का विभाजन कुछ इस प्रकार है –

1. सिद्ध साहित्य

  • चौरासी सिद्धों की साहित्यिक रचनाएँ जो अपभ्रंश और तत्कालीन लोकभाषा के मिश्रण से लिखी गई रचनाएँ शामिल
  • सिद्धों का संबंध बौद्ध धर्म की वज्रयान शाखा से
  • प्रथम सिद्ध कवि सरहपा | पाखंड और आडंबर के घोर विरोधी परंतु सहज जीवन पर बल
  • सरहपा के अलावा लुहिपा, कण्हपा, मीनपा आदि अन्य सिद्ध कवि |

2. जैन साहित्य

  • साहित्य रचना आरंभ करने का श्रेय जैन कवियों को
  • जैन मत की रचनाओं के प्रकार –

1. जिनमें अन्तस्सधना, उपदेश, नीति, सदाचार पर बल दिया जाता है और कर्मकांड का खंडन है, ये मुक्तक हैं |

2. जिनमें पौराणिक, जैन साधकों की प्रेरक जीवन कथा या लोक प्रचलित कथाओं को आधार बनाकर जैन मत का प्रचार किया गया है |
  • रासक या रासो काव्यों की परम्परा का प्रादुर्भाव जैन कवियों द्वारा
  • उपदेश रसायन, बुद्धि रास, जीवदया रास, चंदनबाला रास, सप्तक्षेत्रि रासु आदि ऐसे ही रासो ग्रंथ हैं |

3. नाथ साहित्य

  • नाथ पंथ के प्रवर्तक गोरखनाथ
  • नाथ पंथ सिद्धों की परम्परा का ही विकसित रूप
  • संत साहित्य की पृष्ठभूमि का निर्माण गोरखनाथ द्वारा
  • कबीर आदि संत कवियों में आक्रामक भाषा की जो दीप्ति दिखाई देती है, गोरखनाथ से मिलती है |

4. संत काव्य

  • चक्रधर, ज्ञानेश्वर तथा नामदेव आदि कवियों के हिंदी पद
  • आत्मानुभूति के प्रकाशन की प्रवृत्ति
  • संत कवियों द्वारा मुक्तक शैली को महत्त्व

5. रासो काव्य

  • हिंदी में रासो काव्यों की श्रृंखला लंबी
  • पृथ्वीराज रासो, बीसलदेव रासो, हम्मीर रासो, परमाल रासो, विजयपाल रासो, खुमाण रासो आदि प्रमुख ग्रंथ हैं |
  • वीर रस को प्रमुख स्थान
  • रासो काव्यों की विषय वस्तु राजाओं के चरित एवं उनकी प्रशंसा
  • पृथ्वीराज रासो के कवि चंदबरदाई प्रथम महाकवि

6. लौकिक साहित्य

  • ढोला – मारू रा दूहा एक लोकभाषा काव्य है
  • वसंत – विलास में चौरासी दोहों में बसंत और स्त्रियों पर उसके विलासपूर्ण प्रभाव का मनोहारी चित्रण

7. गद्य साहित्य

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